Class 12th Hindi Chapter 4 | अर्धनारीश्वर | रामधारी सिंह दिगंत भाग 2 | दिनकर सारांश Solution

Class 12th Hindi Chapter 4 : अगर आप भी बिहार बोर्ड हिंदी क्लास 12th की तैयारी करना चाहते हैं, तो आपको आज के इस आर्टिकल में बिहार बोर्ड हिंदी दिगंत भाग 2 अर्धनारीश्वर चैप्टर के बारे में ऑब्जेक्टिव और वस्तुनिष्ठ प्रश्न जो बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की फाइनल वार्षिक परीक्षा में प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनका सभी सवालों के जवाब को बहुत ही बेहतरीन तरीके से बताया गया है। जिसके माध्यम से परीक्षार्थी घर बैठे बिहार बोर्ड इंटरमीडिएट परीक्षा 100 मार्क्स हिंदी के लिए आसानी से तैयारी कर सकते हैं।

रामधारी सिंह दिनकर जी का जन्म 23 सितंबर 1908 ई को सिमरिया बेगूसराय बिहार में हुआ था उनके माता-पिता मन रूपी देवी एवं रवि सिंह और पत्नी का नाम श्यामवती देवी थीं। इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा गांव और उसके आसपास 1928 ईस्वी में मोकामा घाट रेलवे हाई स्कूल से मैट्रिक 1932 में पटना कॉलेज बीo एo ऑनर्स (इतिहास) से किए। इनकी वृति प्रधान अध्यापक एच o ई o स्कूल बरबीघा सब रजिस्टार सबडायरेक्टर जनसंपर्क विभाग एवं बिहार विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर भागलपुर विश्वविद्यालय में उप कुलपति सलाहकार के रूप में भी कार्य किए थे।

रामधारी सिंह दिनकर साहित्यक अभिरुचि

रामधारी सिंह दिनकर 1925 में छात्र सहोदर में पहली कविता प्रकाशित देश (पटना) प्रकाश (बेगूसराय) प्रतिमा (कन्नौज) मैं छात्र जीवन में अनेक रचनाएं प्रकाशित किया 21 वर्ष की अवस्था में पहले पुस्तक प्रभंग प्रकाशित किए। इनकी प्रमुख कृतियां रेणुका 1935, हुंकार 1938, रसवती 1940, कुरुक्षेत्र 1946, रश्मिरथी 1952, नील कुसुम 1954, उर्वशी 1961, परशुराम की प्रतीक्षा 1963, कोमलता और कवित्व 1964, हारे को हरीनाम 1970 आदि कृतियां थी।

प्रमुख गद्य कृतियां मिट्टी की ओर 1946, अर्धनारीश्वर 1952 संस्कृत के चार अध्याय 1956 काव्य की भूमि 1958 वट पीपल 1961, शुद्ध कविता की खोज 1956 दिनकर जी की डायरी 1973 आदि।

प्रश्न 1. दिनकर का जन्म …… गाँव में हुआ था।
उत्तर–सिमरिया

प्रश्न 2. रामधारी सिंह का …….. उपनाम था।
उत्तर–दिनकर

प्रश्न 3. दिनकर की प्रारंभिक शिक्षा ……. में हुई थी।
उत्तर– गाँव

प्रश्न 4. दिनकर के पिता का नाम ……… था
उत्तर–रवि सिंह

प्रश्न 5. धर्मसाधक महात्मा और साधु ……. से भय खाते थे।
उत्तर–नारियों

प्रश्न 6. प्रेमचंद ने कहा है कि–”पुरुष जब नारी का गुण लेता है तब वह …….. बन जाता है।
उत्तर–देवता

अर्धनारीश्वर – ऑब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर (MCQs)

1. ‘अर्धनारीश्वर’ उपन्यास के लेखक कौन हैं?
a) मुंशी प्रेमचंद
b) फणीश्वर नाथ रेणु
c) धर्मवीर भारती
d) नागार्जुन
उत्तर: c) धर्मवीर भारती

2. ‘अर्धनारीश्वर’ उपन्यास किस विषय को प्रमुखता देता है?
a) देशभक्ति
b) ग्रामीण जीवन
c) स्त्री-पुरुष संबंध और मानसिकता
d) व्यापार
उत्तर: c) स्त्री-पुरुष संबंध और मानसिकता

3. ‘अर्धनारीश्वर’ उपन्यास का प्रमुख पात्र कौन है?
a) सुरेश
b) प्रतीक
c) शांता
d) कमल
उत्तर: b) प्रतीक

4. ‘अर्धनारीश्वर’ किस कालखंड में लिखा गया है?
a) स्वतंत्रता पूर्व काल
b) प्राचीन काल
c) आधुनिक काल
d) मध्यकाल
उत्तर: c) आधुनिक काल

5. अर्धनारीश्वर उपन्यास में किस पौराणिक प्रतीक का प्रयोग हुआ है?
a) अर्जुन
b) अर्धनारीश्वर
c) हनुमान
d) कर्ण
उत्तर: b) अर्धनारीश्वर

6. प्रतीक किस पेशे से जुड़ा हुआ है?
a) डॉक्टर
b) पत्रकार
c) वकील
d) इंजीनियर
उत्तर: b) पत्रकार

7. अर्धनारीश्वर का मुख्य उद्देश्य क्या है?
a) राजनीतिक आलोचना
b) समाज में स्त्री-पुरुष संतुलन की व्याख्या
c) आर्थिक असमानता दिखाना
d) ग्रामीण संस्कृति का चित्रण
उत्तर: b) समाज में स्त्री-पुरुष संतुलन की व्याख्या

अर्धनारीश्वर – सब्जेक्टिव प्रश्न उत्तर (MCQs)

प्रश्न 1: प्रतीक के मन में चल रहे अंतर्द्वंद्व का चित्रण कीजिए?

उत्तर: प्रतीक एक संवेदनशील पत्रकार है जो अपने जीवन और समाज में घट रही घटनाओं को लेकर अंतर्मन में द्वंद्व से गुजर रहा है। उसकी सोच समाज में स्त्री के प्रति दृष्टिकोण, उसकी भूमिका और संबंधों की जटिलता के इर्द-गिर्द घूमती है। वह स्वयं को और समाज को समझने की कोशिश करता है, और इसी संघर्ष में उसकी आत्मा ‘अर्धनारीश्वर’ के प्रतीक की ओर आकर्षित होती है।

प्रश्न 2: लेखक ने स्त्री-पुरुष संबंधों को किस दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है?

उत्तर: लेखक ने स्त्री-पुरुष संबंधों को केवल शारीरिक या पारंपरिक भूमिका तक सीमित न रखकर, मानसिक और आत्मिक स्तर पर संतुलन की आवश्यकता पर बल दिया है। अर्धनारीश्वर का प्रतीक यह दर्शाता है कि जब तक पुरुष और स्त्री एक-दूसरे के अनुभव, दर्द और विचारों को समझकर एकता नहीं बनाते, तब तक समाज में संतुलन नहीं आ सकता।

प्रश्न 3: शालिनी और प्रतीक के रिश्ते में तनाव का मुख्य कारण क्या था?

उत्तर: प्रतीक एक संवेदनशील पुरुष है जो समाज की रूढ़ियों से जूझ रहा है, वहीं शालिनी एक आत्मनिर्भर महिला है, जो अपने आत्मसम्मान के लिए प्रतिबद्ध है। उनके बीच का तनाव इसलिए उत्पन्न होता है क्योंकि दोनों की सोच और भावनाओं की अभिव्यक्ति अलग-अलग है। उनका संबंध स्त्री-पुरुष मानसिकता के द्वंद्व का प्रतीक बन जाता है।

प्रश्न 4: अर्धनारीश्वर प्रतीक की उपन्यास में क्या भूमिका है?
उत्तर: अर्धनारीश्वर प्रतीक एक आध्यात्मिक और दार्शनिक अवधारणा है जो स्त्री और पुरुष की पूर्णता का संकेत देता है। यह प्रतीक यह सिखाता है कि दोनों लिंगों की विशेषताएं मिलकर ही एक संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं। यह प्रतीक प्रतीक के आत्ममंथन और उसकी मानसिक यात्रा का मार्गदर्शक बनता है।

रामधारी सिंह दिनकर पुरस्कार एव सम्मान

रामधारी सिंह दिनकर जी की संस्कृति के चार अध्याय पर साहित्य अकादमी एवं उर्वशी पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार राज्यसभा के सांसद पद्म भूषण एवं कई अलंकरणों से सम्मानित राष्ट्रकवि के रूप में सामादृत।

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जितने बड़े कवि थे उतने ही समर्थक गद्यकार भी । उनके गद्य में भी उनकी कविता के गुण ओज पौरुष प्रभापूर्ण वागीमात और रूपक धर्मिता आदि उसी सहजता और प्रवाह के साथ मुखरित होते हैं उनकी कविता और गद्य दोनों में उनके व्यक्तित्व की एक जैसी गहरी छाप है उनकी भाषा कुछ भी छुपती नहीं सब कुछ उजागर कर देती है अब यह पाठ को श्रोताओं की ग्रहणशीलता पर निर्भर करती है कि वह कितनी जागरूक और चौकन्ना है उनकी पराक्रमी वाणी में सन्नाटे और मौन के सक्रिय निषेध का बाल भी है गाया ओवर उठ खड़ी हुई बानी हो।

रामधारी सिंह दिनकर जी किस युग के कवि थे?

रामधारी सिंह दिनकर जी “छायावादोत्तर युग के प्रमुख कवि” थे। वह भारतेंदु युग के प्रवाहमान राष्ट्रीय भावधारा की एक महत्वपूर्ण आधुनिक कवि हैं। कविता लिखने की शुरुआत उन्होंने 30 के दशक में ही कर दी थी परंतु अपने संवेदना और भवबोध से चौथे दशक के प्रमुख कवि के रूप में ही पहचाने गए उन्होंने प्रबंधन गीत प्रगीत काव्य नाटक आदि अनेक कौशलयों में सफलतापूर्वक उत्कृष्ट रचनाएं प्रस्तुत की प्रबंध काव्य के क्षेत्र में छायावाद के बाद के कवियों में उनकी उपलब्धियां सबसे अधिक और उत्कृष्ट है भारतीय और पाश्चात्य साहित्य का उनका अध्ययन अनुशीलन विस्तृत एवं गंभीर है उसकी छाप उनके काव्य और गद्य दोनों पर है।

गद्य के क्षेत्र में रामधारी सिंह दिनकर जी ने अनेक उल्लेखनीय कृतियां दी है जो अनेक अर्थों में उनके युग की उपलब्धियां भी मानी जा सकती है काव्य चिंतन, संस्कृत चिंतन, भाषा चिंतन, समाज चिंतन आदि को लेकर उनके गद्य लेखन की अनेक कोटियां बनती है। उसके गद्य मैं विषय वस्तु शैली, विद्या और गद्यरूप की दृष्टि से पर्याप्त वैविध्य है। समानता: उनका साहित्य विशेषकर गद्य साहित्य, संबोधित साहित्य है। लेखक जानता है कि वह किन के लिए लिख रहा है उसकी रचना पुस्तक मनचाहे रूप से सब संप्रेषित हो जाती हैं। स्वभावत: रामधारी सिंह दिनकर के साहित्य में एक प्रत्यक्षता और गरमाहट है।

रामधारी सिंह दिनकर जी का प्रसिद्ध निबंध

रामधारी सिंह दिनकर जी का प्रसिद्ध “अर्धनारीश्वर” निबंध प्रस्तुत है। अर्धनारीश्वर भारत का एक मिथकीय प्रतीक है जिसमें दिनकर जी अपना मंचित आदर्श निरूपित होते देखते हैं यह उनका प्रिय प्रतीक है जो प्राय: उनके काव्य और गद्य साहित्य में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूपों में व्यक्त होता और काम करता दिखलाइए पड़ता है जीवन भर यह दिनकर जी का उपास्य आदर्श बना रहा। उनकी संवेदना भाववोद हा और काव्य संस्कार पर इसका गहरा असर है।

इस प्रतीक के सांस्कृतिक अभिप्राय क्या है? क्या यह आज के सामान्य मनुष्य और सभ्यता के लिए कोई भी अर्थ और संदेश रखता है? दिनकर जी इसे परिप्रेक्ष्य में इस निबंध के विचार करते हैं दिनकर जी जन्म शताब्दी वर्ष में इस प्रिय प्रतीक पर उनके द्वारा फुर्सत से सोते हुए लिखे गए इस निबंध द्वारा हम लेखक के मौलिक अखंड स्वरूप की एक झलक पा सकते हैं।

अर्धनारीश्वर क्या है?

अर्धनारीश्वर “शंकर और पार्वती” का कल्पित रूप है जिसका आधा अंग पुरुष और आधा अंग नारी का होता है। एक ही मूर्ति की दो आंखें एक रसमयि और दूसरी विकराल: एक ही मूर्ति की दो भुजाएं एक त्रिशूल उठा और दूसरे की पहुंची पर चूड़ियां और उंगलियां अलक्तक से लाल एवं एक ही मूर्ति के दो पांव, एक जरीदार साड़ी से आवृत और दूसरा बाघंबर से ढका हुआ ।

एक हाथ में डमरु, एक में वीणा परम उदार।
एक नयन में गरल, एक में सजीवन की धारा।
जटाजुट में लहर पुण्य की, शीतलता सूख-कारी।
बालचंद दीपित त्रिपुंड पर, बलिहारी, बलिहारी।

नारी यदि नारी हय

शुधु शुधु धरनीर शोभा, शुधु आली,
शुधु भालोवासा, शुधु सुमधुर छले,
शतरूप भंगीमाय पलके – पलके
फुटाय – जड़ाए बंके बेंधे हेंस केंदे
सेवाये सोहागे छेपे चेप थाके सदा
तबे तार सार्थक जनम। की हाईवे
कर्म – कीर्ति वीर्यबल, शिक्षा दीक्षा तार?

अर्थात नारी की सार्थकता उसकी भंगिमा के मोहन और आकर्षक होने में है, केवल पृथ्वी की शोभा, केवल आलोक, केवल प्रेम की प्रतिमा बनने में है। कर्मकीर्ति वीर्यबल और शिक्षा दीक्षा लेकर वह क्या करेगी?

ऐसा प्रशस्तियो को ललनाएं सादियों की आदत और अभ्यास से उसका अंतर्मन भी यही कहता है कि नारी जीवन की सार्थकता पुरुष को रिझा कर रखने में है। यह सुना उन्हें बहुत अच्छा लगता है की नारी स्वपन है। नारी सुगंध है नारी पुरुष की बांह पर झूलती हुई जूही की माला है नारी नर के वक्षस्थल पर मंदार का हर है किंतु वह पराग है जिसे अधिक से अधिक उड़ेल कर हम नवयुग के पुरुष नारियों के भीतर उठने वाले स्वातंत्रता के स्फालिंगो को मंद रखना चाहते हैं।

नर नारी के प्रचलित संबंधों का मनोवैज्ञानिक प्रभाव संसार के इतिहास पर पड़ रहा है और जब तक यह संबंध नहीं सुधारते शांति के मार्ग की सारी बढ़ाएं दूर नहीं होगी नारी कोमलता की आराधना करते-करते इतनी कोमल हो गई है कि अब उसे दुर्बल कहना चाहिए। उसने पौरुष से अपने आप को इतना विहीन बना लिया है कि कर्म के बड़े क्षेत्र में पांव धरते ही उसकी पत्तियां कुम्हलाने लगती है और पुरुष में कोमलता की जो प्यास है उसे नारी भली भांति शांत कर देती है फिर पुरुष अपने भीतर कोमलता का विकास क्यों करें?

इस स्थिति से बाहर निकलने का रास्ता वह नहीं है जिसे रोमांटिक कवियों और चिंतक ने बतलाया है बल्कि वह है जिसकी ओर संकेत गांधी और मार्क्स करते हैं निवृत्तिमार्गियों की तरह नारी से दूर भगाने की बात तो निरी मूर्खता की बात है। और भगवतियों के सम्मान नारी को नीरे भोग की वस्तु मान बैठाना और भी गलत है नारी केवल नर को रिझाने अथवा उसे प्रेरणा देने को नहीं बनी है। जीवन भी पुरुष अपना कर्म क्षेत्र मानता है वह नारी का भी कर्म क्षेत्र है नर और नारी दोनों के जीवनोउद्देश्य एक है। यह अन्याय है की पुरुष तो अपने उद्देश्य से की सिद्धि के लिए मनमाने विस्तार का क्षेत्र अधिकृत कर ले और नारियों के लिए घर का छोटा कोना छोड़ दे। जीवन की प्रत्येक कड़ी घटना आज केवल पुरुष प्रवृत्ति से नियंत्रित और संचालित होती है इसलिए उसमें कर्कशता अधिक, कोमलता कम दिखाई देती है यदि इसे निरंतरण और संचालन में नारियों का भी हाथों हो तो मानवीय संबंधों में कोमलता की वृद्धि अवश्य होगी

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