Bharat Ka Puratan Vidyapeeth : वीर प्रसार का जन्म 3 दिसंबर 14 को सारण जिला (बिहार) के कोई पाँव में हुआ था। उनके पिता महादेवसाय फारसी एवं संस्कृत के अच्छे जानकार थे। वे पहला और सारी के शौकीन थे। इन दोनों की शिक्षा उन्होंने अपने पुत्र राजद प्रसार को भी दी थी। सबसे पहले उनका नामांकन छपरा के हाई स्कूल में हुआ और वहाँ के आठवें एजें में रखे गए। वार्षिक परीक्षा में वे प्रथम आए। स्कूल के प्राचार्य ने प्राप्तांक से प्रसन्न होकर उन्हें दुहरी प्रोन्नति दी। 1902 ई० में वे कलकता विश्वविद्यालय की मैट्रिक्युलेशन परीक्षा में प्रथम आए। उसके बाद आई०ए० बी० ए० और बी० एल० प्रेसीडेंसी कॉलेज से किया। 1911 ई० में वे कलकत्ता में बकौल दल में शामिल हुए। 1916 ई० में जब पटना में एक अलग न्यायालय स्थापित हुआ तब वे वकालत करने के लिए पटना चले आए ।
एकर प्रसाद का राजनैतिक जीवन उत्कृष्ट रहा। वे सविधान सभा के प्रथम स्थायी अध्यक्ष हुए तथा भारतीय गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति हुए। कोलकाता में वे जब छात्र थे तो उनके जीवन में एक महत्त्वपूर्ण घटना बदी- बंग-भंग आंदोलन। इसकी प्रतिक्रिया में देश में व्यापक उत्तेजना छा गई। ‘बिहार टाइम्स’ के संपादक महेश नारायण और सच्चिदानंद सिन्हा का सहारा पाकर राजेंद्र प्रसाद ने ‘बिहार स्टूडेंट्स कांफ्रेंस’ को स्थापना की।
Class 9th Hindi Book
राजेंद्र प्रसाद कोलकाता में हिंदी विद्वानों की संगति में आए और उनके सक्रिय सहयोग से अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्ममेोलन की स्थापना हुई। उनके लेखन की प्रक्रिया आजीवन चलती रहो। 28 फरवरी 1963 ई० में उनका निधन हो गया ।
प्रस्तुत पाठ ‘भारत का पुरातन विद्यापीठ नालंदा’ हमारे इतिहास की एक गौरवपूर्ण गाथा को समेटे हुए है। यह पाठ तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था की ऐसी झाँकी पेश करता है जिसमें हमारी प्राचीन भारतीय शिक्षा एवं विद्या केंद्रों का महानतम स्वरूप दिखलाई पड़ता है।
नालंदा हमारे इतिहास में अत्यंत आकर्षक नाम है, जिसके चारों ओर न केवल भारतीय उन-साधना के सुरभित पुष्प खिले हैं, अपितु किसी समय एशिया महाद्वीप के विस्तृत भूभाग के विद्या-संबंधी सूत्र भी उसके साथ जुड़े हुए थे। ज्ञान के क्षेत्र में देश और जातियों के भेद लुप्त हो जाते हैं। नालंदा इसका उज्ज्वल दृष्टांत था । नालंदा की वाणी एशिया महाद्वीप में पर्वत और समुद्रों के उस पार तक पौल गई थी। लगभग छह सौ वर्षों तक नालंदा एशिया का चैतन्य-केंद्र बना रहा। मगध की प्राचीन राजधानी वैभार पाँच पर्वतों के मध्य में बसी हुई गिरिव्रज या राजगृह नामक स्थान में थी । वर्तमान नालंदा उसी राजगृह के तप्त कुंडों से सात मील उत्तर की ओर है।
नालंदा का प्रोचीन इतिहास भगवान बुद्ध और भगवान महावीर के समय तक जाता है,। कहते हैं, बुद्ध के समय नालंदा गाँव में प्रावारिकों का आम्रवन था। जैन-ग्रंथों के अनुसार नालंदा में महावीर और आचार्य मेखलिपुत्त गोसाल की भेंट हुई थी। उस समय यह राजगृह का उपग्राम या बाहिरिक स्थान समझा जाता था, जहाँ महावीर ने चौदह वर्षावास व्यतीत किए। सूत्रकृतांग के अनुसार नालंदा के एक धनी नागरिक लेप ने धन-धान्य, शैया, आसन, रथ, सुवर्ण आदि के द्वारा भगवान बुद्ध का
स्वागत किया और उनका शिष्य बन गया था । तिब्बत के विद्वान इतिहास-लेखक लामा तारानाथ के अनुसार नालंदा सारिपुत्त की जन्मभूमि थी । उनका चैत्य अशोक के समय में भी वहाँ था। राजा अशोक ने एक मंदिर बनवाकर उसे परिवर्द्धित किया ।
इस प्रकार यद्यपि नालंदा की प्राचीनता की अनुश्रुति बुद्ध, अशोक दोनों से संबंधित है; किंतु एक प्राणवंत विद्यापीठ के रूप में उसके जीवन का आरंभ लगभंग गुप्तकाल में हुआ । तारानाथ ने तो भिक्षु नागार्जुन और आर्यदेव इन दोनों का संबंध नालंदा से लगाया है और यहाँ तक लिखा है कि आचार्य दिनाग ने नालंदा में आकर अनेक प्रतिपक्षियों के साथ शास्त्रों का विचार किया था, जिनमें सुदुर्जय नाम के एक ब्राह्मण विद्वान अग्रणी थे ।
आचार्य शीलभद्र योगशास्त्र के उस समय के सबसे बड़े विद्वान माने जाते थे। उनसे पहल धर्मपाल इस संस्था के प्रसिद्ध कुलपति थे। शीलभद्र, ज्ञानचंद्र, प्रभामित्र, स्थिरमति, गुणमति आदि अन्य आचार्य युवानचांग के समकालीन थे। जिस समय युवानवांग अपने देश चीन को लौट गए।
उस समय भी अपने भारतीय मित्रों के साथ उनका वैसा ही घनिष्ठ संबंध बना रहा। जब युवानचांग नालंदा से विदा होने लगे, तब आचार्य शीलभद्र एवं अन्य भिक्षुओं ने उनसे यहाँ रह जाने के लिए अनुरोध किया । युवानचांग ने उत्तर में यह वचन कहे- “यह देश बुद्ध की जन्मभूमि है, इसके प्रति प्रेम न हो सकना असंभव है; लेकिन यहाँ आने का मेरा उद्देश्य यही था कि अपने भाइयों के हित के लिए मैं भगवान के महान धर्म की खोज करूँ।
मेरा यहाँ आना बहुत ही लाभप्रद सिद्ध हुआ है। अब यहाँ से वापस जाकर मेरी इच्छा है कि जो मैंने पढ़ा-सुना, है, उसे दूसरों के हितार्थ बताऊँ और अनुवाद रूप में लाऊँ, जिसके फलस्वरूप अन्य मनुष्य भी आपके प्रति उसी प्रकार कृतज्ञ हो सकें जिस प्रकार में हुआ हूँ।” इस उत्तर से शीलभद्र को बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने कहा-“यह उदात्त विचार तो बोधिसत्वों जैसे हैं। मेरा हृदय भी तुम्हारी सदाशाओं का समर्थन करता है।” नालंदा के विद्वानों ने विदेशों में
जाकर ज्ञान का प्रसार किया। पहले तो तिब्बत के प्रसिद्ध सम्राट स्त्रोंग छन गम्यो (630 ई०) ने अपने देश में भारती लिपि और ज्ञान का प्रचार करने के लिए अपने यहाँ के विद्वान थोन्मिसम्भोट को नालंदा भेजा, जिसने आचार्य देवविदसिंह के चरणों में बैठकर बौद्ध और ब्राह्मण साहित्य की शिक्षा प्राप्त की।
इसके बाद आठवीं सदी में नालंदा के कुलपति आचार्य शान्तिरक्षित तिब्बती सम्राट के आमंत्रण पर उस देश में गए। नालंदा के तंत्र विद्या के प्रमुख आचार्य कमलशील भी तिब्बत गए थे। नालंदा के विद्वानों ने तिब्बती भाषा सौख कर बौद्ध ग्रंथों और संस्कृत साहित्य का तिब्बती में अनुवाद किया।
इस प्रकार उन्होंने तिब्बत देश को एक साहित्य प्रदान किया और फिर शनैः शनैः वहाँ के निवासियों को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया। नालंदा के आचार्य शातिरक्षित ने ही सबसे पहले 749 ई० में तिब्बत में बौद्ध विहार की स्थापना की थी। इन विद्वानों में आचार्य पद्मसंभव (749 ई०) और दीपशंकर श्री ज्ञानअतिश (980 ई०) के नाम उल्लेखनीय हैं।
प्रभाव नेपाल, तिब्बत, हिन्देशियाः एवं मध्य एशिया की कला पर डाला। नालंदा को कास्य मूर्तियों अत्यंत सुंदर और प्रभावोत्पादक हैं। विद्वानों का अनुमान है कि कुकिंहार से प्राप्त हुई बौद्ध मूर्तियों नालंदा शैली से प्रभावित हैं। वस्तुतः नालंदा की सर्वांगीण उन्नति उस समन्वित साधना का फल था जो शिल्पविद्या और शब्दविद्या एवं धर्म और दर्शन के एक साथ पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने से संभव हुई । हमारी अभिलाषा होनी चाहिए कि भूतकाल के इस प्रबंध से शिक्षा लें और कला. शिल्प, साहित्य, धर्म, दर्शन और ज्ञान का एक बड़ा केंद्र नालंदा में हम पुनः स्थापित करें ।
अभ्यास प्रश्न भारत का पुरातन विद्यापीठ : नालंदा
1. नालंदा की वाणी एशिया महाद्वीप में पर्वत और समुद्रों के उस पार तक फैल गई थी ।” इस वाक्य का आशय स्पष्ट कीजिए ।
2. मगध की प्राचीन राजधानी का नाम क्या था और वह कहाँ अवस्थित थी ?
3. बुद्ध के समय नालंदा में क्या था ?
4. महावीर और मेखलीपुत्त गोसाल की भेंट किस उपग्राम में हुई थी ?
5. महावीर ने नालंदा में कितने दिनों का वर्षावास किया था ?
6. तारानाथ कौन थे ? उन्होंने नालंदा को किसकी जन्मभूमि बताया है ?
7. एक जीवंत विद्यापीठ के रूप में नालंदा कब विकसित हुआ ?
8. फाह्यान कौन थे ? वे नालंदा कब आए थे ?
9. हर्षवर्द्धन के समय में कौन चीनी यात्री भारत आया था, उस समय नालंदा की दशा क्या थी ?
10. नालंदा के नामकरण के बारे में किस चीनी यात्री ने किस ग्रंथ के आधार पर क्या बताया है ?
11. नालंदा विश्वविद्यालय का जन्म कैसे हुआ ?
12. यशोवर्मन के शिलालेख में वर्णित नालंदा का अपने शब्दों में चित्रण कीजिए ।
13. इत्सिंग कौन था ? उसने नालंदा के बारे में क्या बताया है ?
14. विदेशों के साथ नालंदा विश्वविद्यालय के संबंध का कोई एक उदाहरण दीजिए ।
15. नालंदा में किन पाँच विषयों की शिक्षा अनिवार्य थी ?
16. नालंदा के कुछ प्रसिद्ध विद्वानों की सूची बनाइए ।
17. शीलभद्र से युवानचांग (ह्वेनसांग) की क्या बातचीत हुई ?
18. विदेशों में ज्ञान-प्रसार के क्षेत्र में नालंदा के विद्वानों के प्रयासों के विवरण दीजिए ।
19. ज्ञानदान की विशेषता क्या है ?
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